परिचय
अभयारिष्ट सिरप के फायदे ,नुकसान और लेने की विधि : इसके नाम में ही इसके सभी गुणों की व्याख्या छिपी है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!अभया+अरिष्ट जिसमें अभया का मतलब नया जीवन देने वाला और अरिष्ट का मतलब विभिन्न जड़ी बूटियां को आपस में मिलाकर 3 महीने से 6 महीने तक धूप में फर्मेंटेशन करके बनने वाला मद्य
अर्थात जड़ी बूटियां की एक ऐसी दारू बनाना जो किसी प्रकार का नशा ना करें और वह दारू एक दवा बन जाए।
इस प्रकार अभयारिष्ट , अभया (हरड़ या हरितिकी ) को विभिन्न जड़ी बूटियां के साथ मिलाकर एक निश्चित समय अवधि में निश्चित प्रक्रिया के द्वारा बनाई गई एक ऐसी दारू है जो दवा के रूप में देने पर उदर (पेट ) रोगों से संबंधित समस्या को ठीक करके एक नया जीवन देती है।
इस लेख में हम आपको अभयारिष्ट के विभिन्न उपयोगों के बारे में बताने जा रहे हैं कि किस प्रकार यह मनुष्यों के लिए बड़े ही काम की एक दवा है
तथा इससे मनुष्यों के विभिन्न रोगों को सही किया जा सकता है। आशा करते हैं कि यह लेख आप लोगों के लिए उपयोगी सिद्ध हो।
आप लोग इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़िए और बताई गई जानकारी के द्वारा लाभ प्राप्त करिए। [अभयारिष्ट सिरप के फायदे ,नुकसान और लेने की विधि ]
अभयारिष्ट के घटक
मुख्य घटक : अभया ( हरड़ या हरितिकी )
अन्य घटक : सौंफ(मधुरिका), सोंठ (शुण्ठी) ,मोचरस (शाल्मली) , दन्ती , चव्य ,धायफूल (धातकी) , इन्द्रायण की जड़ (इंद्रवारुणी) , निसोत (त्रिवृत) , गोखरु (गोक्षुर) , धनिया (धान्यक) , गुड़ , पानी , महुआ फूल (मधुक कुसुम) , विडन्ग , मुनक्का (द्राक्षा)
अभयारिष्ट के मुख्य घटक हरड़ के बारे में –
हरड़ , जिसे हरितिकी भी कहा जाता है, एक अद्भुत औषधीय है जो आयुर्वेद में अपने अनेक लाभों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी सात प्रकार की जातियाँ (विजया, रोहिणी, पूतना,अमृता,अभया, जीवन्ती ,चेतकी) हैं, लेकिन सामान्य तौर पर तीन प्रकार की ही हरड़ पाई जाती हैं।
इसका पेड़ लगभग 20 से 30 मीटर ऊँचा होता है। इसके फलों को विभिन्न अवस्थाओं में तोड़ा जाता है, जिससे उनके आकार और रंग में भिन्नता आती है।
हरड़ के फलों को जब कच्ची अवस्था में तोड़ लिया जाता है, तो उसे छोटी हरड़ कहते हैं। जब वे आधे पके होते हैं तो उन्हें पीला हरड़ कहा जाता है।
पूरी तरह से पके हुए फलों को बड़ी हरड़ कहते हैं। हरड़ के बीज कठोर और पीले रंग के होते हैं और उनका आकार बड़ा होता है।
हरीतकी(हरड़) के अनेक गुण हैं जो शरीर के तीनों दोषों – वात, पित्त, और कफ को संतुलित करने में मदद करते हैं। यह रूखी और गर्म तासीर की होती है।
यह भूख बढ़ाती है, बुद्धि को तेज करती है, आँखों से सम्बन्धित समस्या के लिए लाभकारी है, उम्र बढाती है, शरीर को बल प्रदान करती है, और वात दोष को दूर करती है।
इसके अलावा, हरीतकी कई रोगों जैसे कफ, मधुमेह, बवासीर, कुष्ठ, सूजन, पेट के रोग, कृमिरोग, गला ख़राब हो जाना , थकान, हिचकी, हृदय के रोग, पीलिया , सिर दर्द ,यकृत(लिवर) के रोग, पथरी,और पेशाब से सम्बन्धित रोगों को दूर करने में सहायक होती है।
अच्छे गुणों वाली हरीतकी वह होती है जो नई, मधुर, ठोस , गोल, भारी, पानी में डूबने वाली, लाल रंग की, तोड़ने में गुड़ के समान टूटने वाली, थोड़ी-सी कड़वी, अधिक रस वाली, मोटी छाल वाली, स्वयं पक कर गिरने वाली और लगभग 20 -25 ग्राम वजन की होती है।
इस प्रकार, हरीतकी एक जीवनदायिनी औषधि है जो अनेक रोगों के उपचार में कारगर है।
अंग्रेजी में इसे ब्लैक मॉयरोबालान के नाम से भी जाना जाता है। लैटिन भाषा में इसे टर्मिनेलिया चेब्युलाकहते हैं। [अभयारिष्ट सिरप के फायदे ,नुकसान और लेने की विधि ]
अभयारिष्ट का उपयोग किन-किन रोगों में करते हैं ?
- बवासीर (Piles)
- कब्ज (Constipation)
- पाचन विकार (Digestive Disorders)
- पेट के रोग (Abdominal Diseases)
- मल-मूत्र विकार (Excretory Disorders)
- लीवर और आंतों की बीमारी (Liver and Intestine Problems)
- कृमि रोग (Worm Infestations)
और पढ़ें : अशोकारिष्ट क्या है और किस काम आती है ?
अभयारिष्ट के फायदे
कब्ज़ में अभयारिष्ट सिरप के प्रयोग से लाभ
हमारे गलत खान पर और गलत रहन-सहन की वजह सेआजकल के परिवेश में कब्ज की शिकायत होना एक आम समस्या बन गई है।
इस समस्या को दूर करने में अभयारिष्ट बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। इसके लिए अभयारिष्ट और कुमार्यासव बराबर मात्रा में मिला लें। इसे पीने से कब्ज की शिकायत दूर होती है।
अथवा 15-20 मिलीलीटर अभयारिष्ट सिरप को बराबर मात्रा में पानी के साथ मिलाएं और दिन में दो बार सुबह-शाम भोजन के 10 मिनट बाद इसको लें ।
स्थिति के अनुसार इसका सेवन केवल एक बार रात में भी किया जा सकता है।
अभयारिष्ट सिरप बवासीर में है फायदेमंद
हम सभी जानते हैं कि बवासीर की मुख्य वजह कब्ज है। अगर हमारे शरीर में से कब्ज को ही खत्म कर दिया जाए तो बवासीर भी खत्म हो जाती है। लेकिन अगर शरीर में बवासीर की समस्या उत्पन्न हो गई है तो इसमें अभयारिष्ट का प्रयोग फायदेमंद साबित होता है।
इसके लिए सबसे पहले अगर बवासीर के कारण बहुत अधिक दर्द की समस्या होती है तो इसके लिए हम कामदुधा रस,अर्शकुठार रस,सूरण बटक या बोलबद्ध रस इनमें से कोई भी दवा लेकर पहले तो अपने दर्द को काम करते हैं।
जब दर्द कम हो जाता है तो उसके बाद अभयारिष्ट का सेवन करने से कब्ज टूटने लगती है और फिर बवासीर में राहत मिलने लगती है। [अभयारिष्ट सिरप के फायदे ,नुकसान और लेने की विधि ]
और पढ़ें : खूनी और बादी बवासीर के लक्षण और उपचार
पाचन से जुड़ी बीमारी में अभयारिष्ट सिरप के फायदे
अभयारिष्ट का सेवन कब्ज को दूर कर पाचन तंत्र को मजबूत करता है। जिससे पाचन संबंधी समस्याएं।कम होने लगती हैं और धीरे-धीरे समय के साथ समाप्त होने लगती है।
लेकिन इसके लिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए सही तरीके का खान-पान और उचित जीवन शैली का अपनाना जरूरी है।
लीवर और आंतों की समस्या में अभयारिष्ट सिरप के सेवन से लाभ
कब्ज की समस्या उत्पन्न होने के कारण आँत और लीवर में विषाक्त अपशिष्ट जमा होने लगते हैं। जो धीरे-धीरे हमारे लीवर और आंतों को गंभीर समस्या में डाल देते हैं।
जब अभयारिष्ट का प्रयोग किया जाता है तो वह कब्ज को तोड़ देती है जिससे हमारे आँतों में जमा अपशिष्ठ धीरे-धीरे बाहर आने लगता है और इस प्रकार आँत और लीवर की सफाई हो जाती है।
और पढ़ें : आंखों की रोशनी बढ़ाने की घरेलू दवा नीम के उपयोग फायदे और नुकसान
जिससे लीवर और आँत मजबूत होने की वजह से पाचन तंत्र सुधर जाता है और जब पाचन तंत्र सुधर जाता है तो शरीर में किसी प्रकार का अन्य रोग उत्पन्न नहीं होता।
भूख कम लगने की अवस्था में अभयारिष्ट का प्रयोग
अभयारिष्ट अपने पाचन और क्षुधावर्धक गुणों के कारण भूख कम लगने की समस्या को दूर करने में मदद करता है।[अभयारिष्ट सिरप के फायदे ,नुकसान और लेने की विधि ]
और पढ़ें : जड़ी-बूटियों के प्रयोग और
अभयारिष्ट सिरप पेशाब संबंधी विकारों को रोकने में मदद करता है
अभयारिष्ट सिरप में सूजनरोधी और जीवाणुरोधी गुण होते हैं जो बैक्टीरिया के संक्रमण को रोकते हैं और पेशाब नाली की सूजन को कम करते हैं।और पेशाब से सम्बंधित विकारों को दूर करता है।
इस सिरप से गुर्दे की पथरी का भी प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है।
अभयारिष्ट की खुराक, मात्रा और विधि
मात्रा : 15 – 25 ml
अधिकतम मात्रा : 25 ml
कितनी बार लेना है : दिन में 2 बार
समय : भोजन के 10 मिनट बाद
लेने की विधि : बराबर मात्रा में गुनगुने पानी के साथ
दवा को लेने की अवधि : चिकित्सा के निर्देशानुसार
अभयारिष्ट के नुकसान
- अगर बिना कारण इसका सेवन किया जाए तो महिलाओ का गर्भ प्रभावित हो सकता है।
- बिना कारण प्रयोग करने पर सिर दर्द ,पेट दर्द , दस्त ,उल्टी ,चक्कर आने की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- क्योंकि इसके अंदर गुड मिला होता है इसलिए यह मधुमेह के रोगियों को नुकसान पहुंचा सकता है।
- अगर सही मात्रा में इसका सेवन न किया जाए तो उल्टी या फिर मतली की शिकायत हो सकती है।[अभयारिष्ट सिरप के फायदे ,नुकसान और लेने की विधि ]
अभयारिष्ट सिरप के फायदे ,नुकसान और लेने की विधि – FAQ-
अभयारिष्ट दवा पीने से क्या क्या फायदा होता है?
अभयारिष्ट निम्न रोगों में फायदा पहुंचाती है –
- बवासीर (Piles)
- कब्ज (Constipation)
- पाचन विकार (Digestive Disorders)
- पेट के रोग (Abdominal Diseases)
- मल-मूत्र विकार (Excretory Disorders)
- लीवर और आंतों की बीमारी (Liver and Intestine Problems)
- कृमि रोग (Worm Infestations)
क्या गर्भावस्था के दौरान अभयारिष्ट पीना चाहिए ?
नहीं गर्भावस्था के दौरान अभयारिष्ट का सेवन नहीं करना चाहिए। या फिर चिकत्सक के निर्देश का पालन करना चाहिए।
अभयारिष्ट के दुष्प्रभाव क्या हैं?
अगर बिना कारण इसका सेवन किया जाए तो महिलाओ का गर्भ प्रभावित हो सकता है।
बिना कारण प्रयोग करने पर सिर दर्द ,पेट दर्द , दस्त ,उल्टी ,चक्कर आने की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
क्योंकि इसके अंदर गुड मिला होता है इसलिए यह मधुमेह के रोगियों को नुकसान पहुंचा सकता है।
अगर सही मात्रा में इसका सेवन न किया जाए तो उल्टी या फिर मतली की शिकायत हो सकती है
चेतावनी
इस लेख में दी गई समस्त जानकारी केवल ज्ञानवर्धन के लिए और आयुर्वेद के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए है। इसका उपयोग करने से पहले चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
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